Friday, July 20, 2018

चाहत

सुनो तो.. कल कुछ ऐसा हुआ..
कई गीली रातों के बाद मुस्कुराया था मेरा आशियां,

हुआ यूं कि वो साथ बैठे थे हमारे,
दूरियों का एहसास जकड़े था,
मगर रोशन थे उम्मीदों के सितारे,

कितने दिनों से कुछ बातें अनकही थीं,
लफ्ज़ खामोश हो गए थे और आंखों में नमी थी,

मेरी नज़रें झुकी तो उसने थाम लिया था हाथ मेरा,
वहीं रुक गए थे सारे जज़्बात...
फिर लगा शायद उस लम्हे के लिए खामोशी ही सही थी,

मेरा दिल चहक उठा था,
बड़े दिनों के बाद उस रात सुकून से मैं सोइ थी,
और जब आंख खुली तो जाना कि वो चाहत
महज़ एक ख़्वाब और वो ख़्वाब ही मेरी चाहत थी,

हर उम्मीद आँखों के सामने टूट रही थी,
सपने फिर रात के अंधेरे में कहीं छिप गए,
और ख्वाइशें दिन के उजले में दब गईं थीं,

कल जिस रात से प्यार हो गया था,
आज उसका एहसास भी खलने लगा था,
एक बार फिर मेरी रातें गीली हो गईं और
मेरा आशियाना मुस्कुराना भूल गया था।

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